Saturday, April 28, 2012

बचपन की यादें ....

हर जिंदगी की पहली नयी सुबह एक नए सपनो को आँखों में ले कर होती हर इन्सान की एक जैसी सुबह होती है. हर इन्सान की जिंदगी एक जैसी नहीं होती लेकिन एक दिन हमारे बचपन का ऐसा होता है जो हमें एक जैसा बना देता है, याद करते है हम वो बचपन क हर दिन जिसे हम हर पल जीते थे. वो दिन जो बिना किसी सोच के बिना इस जिंदगी की परेशानियों से बहुत दूर हमारी एक अपनी ही दुनिया हुई करती थी. गर्मियों की छुट्टी का मज़ा और छुट्टियाँ ख़त्म होने पर स्कूल न जाने का बहाना बनाना. कहाँ गए वो दिन जिन्हें हम याद करते है तो हमारे आखों में पानी छलक जाते है. वो दिन आज भी याद है जब हम शाम क चार बजने का किया करते थे की बहार जा कर दोस्तों क साथ क्रिकेट, ऐड, पिट्टो, बूमर जैसे खेल खेला करते थे. और खेलते खेलते जब शाम के आठ बज जाते तो घर लौटने पर पापा और मम्मी से डाट खाने क डर से चुपके से जाकर अपने रूम में बुक्स लेकर बैठ जाना मनो पढ़ रहे हो हम और जब पढने में मन न लगे तो अपनी बेहेन निमिषा हम दोनों साथ में नेम प्लेस एनिमल एंड थिंग्स गेम खेलते. वो दिन जब याद आते है तो मन करता फिर से छोटे बन जाये उस वक़्त वो वापस ले आये कहाँ गए वो बीते लम्हे वो बीते दिन जिन्हें हम भुला नहीं सकते. वक़्त क खेल ने मानो दुनिया ही बदल दी हो. उन् दिनों को याद कर लगता काश वो दिन फिर से लौट आते, काश हम फिर से बच्चे हो जाते काश, काश लकिन वक़्त किसी का नहीं होता. वक़्त के इस खेल वक़्त से साथ हर रिश्ते बदल जाते है.


12 comments:

  1. तुम क्रिकेट में तो हमेशा पहिला बाल पे आउट हो जाया करती थी रे....:D

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    1. चुप रहो अपना बारे में तो मत ही कहो...:P

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    2. हम तो बहुत अच्छा खेलते थे...किसी से पूछ लेना ;)

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  2. बहुत प्यारी पोस्ट है दीप्ती.. अभिषेक तो एकदम्म बेकार लिखता है, उसको थोडा सिखा देना लिखना.
    With love, Prashant भैया. :)

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया भैया मुझे तो हिंदी लिखनी आती ही नहीं है, भैया बहुत अच्छा लिखता है उसी से तो सीख रही हूँ..:)

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  3. बहुत ही अच्छा लिखती हो दीप्ती... हमें भी अपना बचपना याद दिला दिया तुमने.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया भैया मुझे तो हिंदी लिखनी आती ही नहीं है बहुत बेकार है मेरी हिंदी बस उसी को सुधारने की कोशिश कर रही हूँ .

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  4. जेतना कीमती बचपन का दिन सब होता है, ओतने मूल्यवान कोनो पहिला काम भी होता है.. जइसे तुमरा ई प्यारा-प्यारा ब्लॉग.. अऊर पहिलके पोस्ट में छक्का... ई पढला के बाद साय्ड कोई होगा जिसको अपना बचपन नहीं याद आ गया होगा..!! एगो बात अऊर कह देते हैं कि आजकल का बच्चा सब त पैड बूढ़ा होता है.. ऊ सब अगर आज अपना बचपन का पोस्ट लिखेगा न त सिनचन, जैक एंड कोडी, माइली साइरस..माने टीवी छोड़कर कुच्छो नहीं लिख सकता है!!
    जियो अऊर अइसहीं मन लगाकर लिखो!!

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  5. बढ़िया पोस्ट !!! वेलकम :)

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  6. सुन्दर लेखन!
    ढ़ेर सारी शुभकामनाएं:)

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  7. धन्यवाद् सभी को..

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  8. जियोह्ह बच्चा । आउर का कह रही है हमको हिंदी नहीं आती है ई अभिसेकवा से तो कतई नहीं सीखना न त चचा मिर्ज़ा के चक्कर में तुमको दीप्ति गालिब बना के छोडेगा रे । सुनो तुम अईसने आराम आराम से जो मन करता है लिखते चलो । बचपन उस हिट पिक्चर की तरह होता है जिसे मन बार बार देखने का करता है । बहुत बहुत शुभकामनाएं बच्चा लाल लिखती रहो

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