Saturday, November 3, 2012

“दस्तक देती ख़ुशयाँ”

भाग – 6 : आज का दिन बहुत ख़ास था , सुबह सुबह वो लड़की जाग गयी और बेसब्री से अपने पिता के ऑफिस जाने का इंतजार कर रही । उसके पिता भी टाइम से पहले तयार हो गए । मानो उनके लिए भी आज का दिन बहुत ख़ास था । उसकी माँ को भी आज के दिन का बेसब्री से इंतजार था घर में सभी को एक उम्मीद थी। उसके पिता ऑफिस जाने के पहले उसके नए स्कूल उसका रिज़ल्ट देखने जाने वाले थे। वो स्कूल पहुँचे वेटिंग लिस्ट मे क्वालीफाई स्टूडेंट के लिस्ट लगे थे स्कूल के नोटिस बोर्ड पर उसके पिता ने रिज़ल्ट देखा और देख कर अपने ऑफिस पहुंचे। इधर ये लकी लड़की फोन के पास बैठी थी अपने पिता के फोन के इंतजार मे फोन रिंग किया इसने जल्दी से रिसिव किया ये फोन इसकी नानी था इसने तुरंत एपीआई माँ को बुलाकर फोन देदीय बिना कुछ बात किए। उसकी माँ ने लगभग 10 मिनट तक फोन बात की और ये टाइम देख रही इससे इंतजार नहीं हो रहा था, जैसे ही माँ ने फोन रखा इसने अपनी माँ से पूछा पापा के ऑफिस फोन करे उसकी माँ ने कहा पापा ने कहा है न रिज़ल्ट देखकर जैसे ऑफिस पाहुचेंगे फोन कर देंगे। तभी फोन आया रिंग हुआ एक बार रिंग होते ही वो लड़की फोन रेसिव की उसके पिता का ही फोन था। इस्स लड़की ने पूछा पापा रिज़ल्ट देख लिए क्या है रिज़ल्ट उसके पिता ने कहा तुम 2 सवालो के जवाब तो दिये ही नहीं थे तो रिज़ल्ट क्या होगा ! ये लड़की बिल्कुल चुप हो गयी ये कन्फ़र्म हो गयी की इस्स स्कूल मे अब इसका एड्मिशन नहीं होगा। तभी अचानक से इसके पिता कहते है तुम्हारा इस्स स्कूल मे हो गया अब नैक्सट वीक एड्मिशन के लिए चलना है। इस लड़की ने कहा क्या क्या हो गया सच में पापा इसके पिता ने कहा हाँ हो गया। यहाँ के प्रिंसिपल से मिल कर आ रहे फादर ने कहा तुम्हारा रिट्टेन टेस्ट बहुत अच्छा था मैथ्स मे एक सवाल का भी जवाब तुमने गलत नहीं दिया सारा सही था तुम्हारा एड्मिशन इसी मेरिट बेसिस पर हो रहा है। इतना सब कुछ कह कर उसके पिता ने फोन रख दिया। इधर इसकी माँ पूछी क्या हुआ क्या कहा तुम्हारे पापा ने इसने बताया सब कुछ उसकी माँ बहौत खुश हुई तुरंत भगवान के पास जाकर हाथ ज़ोरकर ईश्वर को धन्यवाद कहा। इधर इस्स लड़की को ये बात जानने के बाद इसकी खुशी का तो ठिकाना नहीं आज ये बहुत बहुत खुश थी इतनी खुश तो वो बहुत दिनो बाद थी। न जाने कितने दिनो बाद आज वो खुल कर हंस रही थी। आज का दिन उसके लिए बहुत ख़ास था। ये अप्रैल का महिना था दूसरी तारीख थी। इस्स लड़की ने अपनी डाइरि इस्स दिन को मार्क कर लिया। शाम हुई इसके पिता ऑफिस से घर वापस आए। आज वो भी बहुत खुश थे। ऐसा लग रहा था की घर मे खुशी ने अपनी जगह बना ली हो। सभी के चेहरे पर हसी थी। उसके पिता ऑफिस से जब आते थे घर शाम को तो इस्स लड़की के घर का नियम था रूटीन था की शाम को चाय और नसता होता तो घर के हर सदस्य साथ एक साथ बैठकर कुछ वक्त साथ बिताता। आज का दिन ख़ास था। ये लड़की बहुत खुश थी। आज रात का खाना कुछ ख़ास होने वाला था ये लड़की बनाने वाली थी। गेस क्रो क्या ? चौमिंग इस लड़की का फ़ेवरेट डिश। जो इसके पापा और इसकी माँ भी पसंद से ही खाते थे। इसकी माँ ने सारा सब्जी इसके लिए काट दिया था और फिर इसने बारी मन से मेहनत करके आज रात का खाना बनाया। रात के 9 बजे इसके घर के खाने का टाइम है इसका खाना भी तयार हो गया था। इसने रात का खाना निकाला और सबने साथ बैठ कर बड़े अच्छे से खाना खाया। ये लड़की चौमिंग बना सबसे पहले सीखी थी और ये चौमिंग बहुत अच्छी बनी है इसके पिता ने ये बात इससे कहा। खाना खाकर इसने थोड़ी देर टी॰वी॰ देखी और फिर अपने कमरे मे चली गयी सोने के लिए। बेड पर लेती लेटी लेटी सोच रही की आज बहुत दिनो बाद इसने अपने पापा को इसके कारण खुश होते देखा आज पहला दिन था जब इसके पिता इसके पढ़ाई को लेकर खुश हुए। अब ये सोचने लगी की शायद इसका सपना अब सच होता दिख रहा था इसे । ये इतनी खुश थी की इसे नींद नहीं आ रही थी। एक तरफ पापा को इतना खुश देखकर इसे बहुत खुशी हो रही थी और दूसरे तरफ फिर वो नए स्कूल मे जाने का डर ! अब क्या करे इसे कुछ समझ नहीं आ रहा। इसे लग रहा की पता नहीं कैसे स्टूडेंट्स होंगे कैसे फ़्रेंड्स नए बनाएँगे बहुत सारे सवाल इसके मन में उठ रहे थे। एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी। एक तरफ इतनी खुशी और दूसरे पल इतनी बेचैनी इसे कुछ समझ मे नहीं आ पा रहा था। आज का दिन इतना ख़ास था इसके लिए एक कॉन्फ़िडेंस आ रहा था इसमे आज की शायद मै भी कुछ कर सकती हूँ। जहाँ ये एक तरफ सोचने लगी थी की शायद ये सब बच्चो की तरह नहीं है लकीन आज का दिन इसकी इस सोच को बादल रहा था। इसे लग रहा था की शायद ये भी कुछ कर सक्ति है बाकी सब बच्चो की तरह । रात चाँद बहुत खुबसुरत दिख रहा था पुर्णिमा की रात थी चाँद पूरी तरह गोल चमकता दिख रहा था तारे चारो तरफ घिरे थे वो लड़की रात करीब 11बजे ऊपर टेरिस पर आई और ऊपर इस्स प्यारे से नजारे को उस मासूमियत से देख रही थी ।  मानो कई सारे सवाल इसकी जहन में थे जिनका जवाब इसके पास नहीं था और न तो बताने वाला था इसे कोई कुछ। तकरीबन रात के 12:30 बज रहे रहे थे इसने सोचा की अब नीचे अपने रूम में जाना चाहिए वरना पापा या माँ ने मुझे इतने रात मे यहाँ पर देख लिया तो मै बहुत डाट खा जाऊँगी, यह सोच कर अपने रूम में वापस चली गयी और अपने रूम में पाहुच कर आईने के सामने खड़े होकर ये सोचने लगी मै मै शायद अब कुछ कर सकती हूँ अपने और अपने पापा के सपनों को शायद पूरा कर सकती हूँ फिर अपने बेड पर लेटी लेटी यही बातें सोचते सोचते उस चाँदनी रात में रात के साथ वो भी खो गयी ॥